Not known Factual Statements About chudail a jaaye

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चुड़ैल का वास्तव में चारित्रिक और दिल बच्चों के लिए अति प्रिय था जो उसे बच्चों के साथ खेलने पर मजबूर कर रहा था। लड़कों ने उसे समझाया और उसे गांव वालों के लिए एक संदेश दिया कि चुड़ैल भी एक इंसान है और उसके साथ दया का बर्ताव करना चाहिए। 

एक दिन निशा जंगल में घूम रही थी तभी उसे एक छोटा खरगोश मिला जो घायल था। निशा ने तुरंत अपने जाडू से उड़ान भरी और घर से जड़ी बूटियों का बैग ले आई। उसने अपनी जादुई जड़ी बूटियों से खरगोश का इलाज किया और उसे ठीक कर दिया। खरगोश खुश होकर निशा का धन्यवाद करते हुए चला गया। 

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तब लड़की बोली, नहीं मां, मैं पूजा खतम करके घर का सारा काम कर दूंगी। फिर लड़की पूजा खतम करके घर के काम में लग गई। लड़की ने बरतन मांजे और कपड़े धोए। घर का सारा काम खत्म करते करते शाम हो गई। सुबह से लड़की ने कुछ खाया भी नहीं था। फिर भी लड़की ने घर का सारा काम खत्म कर दिया। 

इस घटना के बाद जंगल के सभी जानवर और गांव वाले निशा को अपने दिल से दयालु चुड़ैल मानने लगे। उन्होंने उसकी बहुत इज्जत की और हमेशा उसकी मदद के लिए आभारी रहे।

नैतिक कहानियाँ बच्चों की कल्पनाशक्ति को बढ़ावा देकर उन्हें जीवन के...

यह सवाल कंपा देने वाला था. अदालत सन्न रह गई थी. कोई इस तरह का सवाल कैसे पूछ सकता है! लेकिन यह हैरत का चरम नहीं था. चरम था भंवरी देवी का जवाब. भंवरी देवी बनीं नंदिता दास ने तो जैसे अपने अभिनय के सारे सुर उस एक डायलॉग में लगा दिए थे. वह वकील की ओर थोड़ा सा झुकीं और उसकी आंखों में zero sex drive आंखें डालकर कहा, "जद मेल औरत री मर्जी से होवे, तो पाणी झड़े है, नहीं तो खून बहवे है."

हालांकि हालात हमारे मुल्क़ों में ऐसे हैं कि लोग सच्ची बात कहने से डरते है."

असल ज़िंदगी का तो पता नहीं लेकिन इस कल्पना की दुनिया में ये औरतें जिस तरह अपने सफ़र को अंजाम तक ले जाती हैं, वो 'पोएटिक जस्टिस' जैसा एहसास ज़रूर देता है- जैसे बॉलीवुड का हीरो जब अन्याय करने वाले विलेन को क्लाइमेक्स में पटक-पटक कर मारता है तो आपको लगता है जैसे समाज का और आपका बदला उसने ले लिया हो.

एक दिन गांव के एक युवक ने तय किया कि वह इस चुड़ैल का रहस्य सुलझाएगा। उसने अपने दोस्तों को साथ लिया और और रात के समय उस चुड़ैल के पीछे चला गया। धीरे धीरे वे चुड़ैल के घर के पास पहुंचे। उसका घर डरावना और भयंकर था। 

पर मैंने उन मर्दों को भी दिखाया है जो सही मायनों में इन औरतों के हमदर्द थे.''

लेकिन जब शहरों में फीमेल ऑर्गैजम और जी-स्पॉट पर लिखा, पढ़ा और बोला जा रहा है तो आप ऐसा क्यों मानते हैं कि गांव की औरतें बात नहीं करती होंगी?"

क़ानून से न्याय माँगने के लिए जब ये क़ानून के दायरे से बाहर जाती हैं तो इन चुड़ैलों का तर्क आप काट नहीं पाते, "चाहते तो यही थे कि सब कुछ क़ानून के दायरे में हो मगर क्या है कि किताब खोली तो समझ में आया कि क़ानून भी लिखा तो मर्दों ने ही है.

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